History of Cambodia: कंबोडिया, दक्षिण-पूर्व एशिया का एक समृद्ध और ऐतिहासिक देश है, जिसकी पहचान उसकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर, भव्य मंदिरों और क्रूर राजनीतिक घटनाओं के लिए जानी जाती है। इसका इतिहास न केवल स्थापत्य कला और धार्मिक बदलावों से जुड़ा है, बल्कि उपनिवेशवाद, नरसंहार और पुनर्निर्माण की जटिलताओं से भी भरा हुआ है। आइए, कंबोडिया के ऐतिहासिक सफर को कालानुक्रमिक क्रम में विस्तार से समझते हैं।
प्रारंभिक सभ्यताएं और फ़ुनान साम्राज्य (1वीं से 6वीं सदी)
कंबोडिया के सबसे पुराने राज्य के प्रमाण फ़ुनान (Funan) साम्राज्य से मिलते हैं, जो पहली से छठी शताब्दी तक अस्तित्व में रहा। यह एक समृद्ध व्यापारिक राज्य था जो समुद्र के रास्ते भारत और चीन से जुड़ा हुआ था।
भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव फ़ुनान पर पड़ा। संस्कृत भाषा, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म यहाँ के शासकों और जनता द्वारा अपनाए गए।
चेनला साम्राज्य (6वीं से 8वीं सदी)
फ़ुनान के पतन के बाद चेनला (Chenla) नामक राज्य उभरा। चेनला ने राजनीतिक रूप से कंबोडिया के भीतर अधिक संगठित शासन की नींव रखी। इस समय अनेक हिन्दू मंदिरों का निर्माण हुआ और एक स्थायी राजधानी की अवधारणा विकसित हुई। चेनला भी दो भागों में विभाजित हो गया—जल चेनला और थल चेनला।
खमेर साम्राज्य का स्वर्णकाल (802–1431 ई.)
➤ जयवर्मन द्वितीय और खमेर साम्राज्य की स्थापना
802 ईस्वी में जयवर्मन द्वितीय ने खुद को “चक्रवर्ती राजा” घोषित करके खमेर साम्राज्य की नींव रखी। यहीं से कंबोडिया का सबसे गौरवशाली और शक्तिशाली काल शुरू हुआ।
➤ अंगकोर काल और मंदिर निर्माण
- राजधानी अंगकोर (Angkor) में स्थानांतरित की गई।
- विशाल जल संरचनाएं, सड़कों और मंदिरों का निर्माण हुआ।
- अंगकोर वाट (Angkor Wat) का निर्माण सूर्यवर्मन द्वितीय ने (1113–1150) में कराया। यह हिन्दू धर्म को समर्पित विश्व का सबसे बड़ा मंदिर है।
- बाद में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ा और कई मंदिर बौद्ध धर्म के प्रतीक बने।
➤ राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव
खमेर साम्राज्य ने लाओस, थाईलैंड और वियतनाम तक अपना विस्तार किया। इसकी स्थापत्य कला, नृत्य और लिपियों ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया।
खमेर साम्राज्य का पतन (15वीं सदी)
➤ थाई आक्रमण और राजधानी का परित्याग
- 1431 ईस्वी में थाईलैंड के अयुत्थया साम्राज्य ने अंगकोर पर हमला किया।
- राजधानी को दक्षिण में स्थानांतरित करना पड़ा।
- इसके बाद अंगकोर क्षेत्र धीरे-धीरे वीरान हो गया।
➤ राजनीतिक अस्थिरता
15वीं से 19वीं सदी तक कंबोडिया लगातार थाई और वियतनामी शक्तियों के बीच संघर्ष करता रहा। राजा केवल प्रतीकात्मक शासक रह गए।
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद (1863–1953)
➤ फ्रांसीसी संरक्षण और इंडोचाइना
- 1863 में कंबोडिया ने फ्रांसीसी संरक्षण स्वीकार किया।
- 1887 में यह फ्रांसीसी इंडोचाइना का हिस्सा बन गया।
- पारंपरिक प्रशासनिक ढांचा कमज़ोर हुआ, लेकिन अंगकोर की पुनः खोज (1860s) ने दुनिया का ध्यान कंबोडिया की संस्कृति की ओर खींचा।
➤ स्वतंत्रता की राह
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुआ। अंततः 1953 में नोरोडोम सिहानुक के नेतृत्व में कंबोडिया ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
राजनीतिक उथल-पुथल और खमेर रूज (1953–1979)
➤ राजशाही से गणराज्य तक
- 1950–60 के दशक में सिहानुक लोकप्रिय नेता रहे, लेकिन 1970 में उन्हें हटाकर देश को गणराज्य घोषित कर दिया गया।
- अमेरिका और वियतनाम युद्ध के प्रभाव ने कंबोडिया को भी हिंसा में घसीट लिया।
➤ खमेर रूज शासन (1975–1979)
- 1975 में पोल पॉट के नेतृत्व में कट्टरपंथी कम्युनिस्ट संगठन खमेर रूज ने सत्ता संभाली।
- उन्होंने “शुद्ध समाज” की अवधारणा के तहत सभी शहरवासियों को ग्रामीण क्षेत्रों में भेज दिया।
- स्कूल, धर्म, पैसा, और परिवार जैसी संस्थाओं को समाप्त कर दिया गया।
- लगभग 20 लाख लोगों की हत्या की गई — यह कंबोडियन नरसंहार कहलाता है।
➤ वियतनामी हस्तक्षेप और राहत
1979 में वियतनाम की सेना ने खमेर रूज को हटाया और एक नई सरकार स्थापित की।
पुनर्निर्माण और लोकतंत्र की स्थापना (1990 के बाद)
- 1991 में संयुक्त राष्ट्र (UN) की मध्यस्थता से शांति समझौता हुआ।
- 1993 में संविधान सभा बनी और कंबोडिया को फिर से एक संवैधानिक राजतंत्र घोषित किया गया।
- राजा नोरोडोम सिहानुक फिर से राजा बने (लेकिन प्रतीकात्मक पद पर)।
आधुनिक कंबोडिया: चुनौतियाँ और विकास
आज का कंबोडिया तेजी से पर्यटन, उद्योग और कृषि में विकास कर रहा है, लेकिन गरीबी, भ्रष्टाचार और शिक्षा जैसे मुद्दे अभी भी देश की चुनौती हैं।
अंगकोर वाट आज भी दुनिया भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है और यह UNESCO World Heritage Site के रूप में संरक्षित है।
कंबोडिया की संस्कृति और विरासत
- धर्म: मुख्यतः थेरवाद बौद्ध धर्म (95% लोग)
- भाषा: खमेर (आधिकारिक भाषा)
- नृत्य और कला: अपसरा नृत्य, खमेर स्थापत्य
- उत्सव: खमेर नव वर्ष, वाट फेस्टिवल, पचास दिन का पिंडदान (पछुम बैन)
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निष्कर्ष
कंबोडिया का इतिहास एक गहन और बहुआयामी कथा है—जहां प्राचीन वैभव, धार्मिक गहराई, उपनिवेशवाद की पीड़ा, नरसंहार का अंधकार और पुनर्निर्माण की उम्मीदें मिलती हैं। आज का कंबोडिया अपने अतीत से सबक लेकर भविष्य की ओर अग्रसर हो रहा है।
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