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कम्युनिस्ट पार्टी का उदय, सांस्कृतिक क्रांति, ग्रेट लीप फॉरवर्ड 20वीं सदी के दौरान चीन में जो राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन हुए, वे न केवल चीन के भविष्य को बल्कि वैश्विक राजनीति को भी प्रभावित करने वाले थे। इन परिवर्तनों के केंद्र में थे माओ त्से तुंग – एक विचारक, सेनापति और कम्युनिस्ट क्रांति के अगुवा।
कम्युनिस्ट पार्टी का उदय (Rise of the Communist Party)
1911 में चीन की किंग वंश (Qing Dynasty) के पतन के बाद देश में अराजकता फैल गई। लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के प्रयास सफल नहीं हो सके। 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की स्थापना हुई, जिसमें माओ त्से तुंग एक प्रमुख सदस्य के रूप में उभरे। उस समय चीन में राष्ट्रीयतावादी पार्टी (कुओमिनतांग – KMT) भी शक्तिशाली थी। CCP और KMT ने शुरू में साथ मिलकर काम किया, लेकिन जल्द ही विचारधारा के टकराव के कारण दोनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।
1934 में माओ और उनके अनुयायियों ने “लॉन्ग मार्च” नामक ऐतिहासिक यात्रा की, जो CCP के लिए एक प्रतीकात्मक विजय बन गई। यह यात्रा उन्हें जनता के करीब ले गई और ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी का जनाधार मजबूत हुआ।
चीनी क्रांति और माओ का सत्ता में आगमन
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, CCP और KMT के बीच गृहयुद्ध और तेज हो गया। अंततः 1949 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने विजय प्राप्त की और 1 अक्टूबर 1949 को पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (People’s Republic of China) की स्थापना हुई। माओ इसके पहले अध्यक्ष बने।
माओ की विचारधारा मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर आधारित थी, लेकिन उन्होंने उसे चीन की ग्रामीण परिस्थितियों के अनुसार ढालकर “माओवाद” के रूप में विकसित किया।
ग्रेट लीप फॉरवर्ड (Great Leap Forward, 1958-1962)
माओ ने चीन को तीव्र आर्थिक और औद्योगिक विकास की दिशा में अग्रसर करने के लिए 1958 में “ग्रेट लीप फॉरवर्ड” योजना शुरू की। इस योजना के मुख्य उद्देश्य थे:
कृषि और उद्योग का सामूहिकीकरण (Collectivization)
लोहे और इस्पात के बड़े पैमाने पर उत्पादन
ग्रामीण क्षेत्रों में “पीपल्स कम्यून” की स्थापना
हालाँकि इस योजना का परिणाम विनाशकारी रहा। अपर्याप्त योजना और प्रशासनिक विफलताओं के कारण कृषि उत्पादन घट गया और 1959-61 के दौरान भयानक अकाल पड़ा, जिसमें अनुमानित 2 से 4 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई। यह माओ के नेतृत्व पर पहला बड़ा सवाल था, लेकिन उन्होंने अपनी आलोचना को दबा दिया।
सांस्कृतिक क्रांति (Cultural Revolution, 1966-1976)
ग्रेट लीप फॉरवर्ड की असफलता के बाद माओ को अपने राजनीतिक प्रभाव को फिर से मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हुई। इसी उद्देश्य से उन्होंने 1966 में “सांस्कृतिक क्रांति” की शुरुआत की। इसका मुख्य उद्देश्य था:
“पुराने विचारों, परंपराओं, संस्कृति और आदतों” का नाश
पार्टी और सरकार में माओ विरोधी तत्वों को हटाना
युवा पीढ़ी को कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित करना
माओ ने “रेड गार्ड्स” नामक युवा कार्यकर्ताओं को संगठित किया, जिन्होंने स्कूलों, विश्वविद्यालयों, धार्मिक स्थलों और नेताओं पर हमला किया। पुस्तकें जलाई गईं, बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित किया गया, लाखों लोगों को मजदूरी शिविरों में भेजा गया।
इस क्रांति ने देश में भारी सामाजिक अशांति फैलाई और आर्थिक प्रगति ठप हो गई। दस साल तक चली इस क्रांति में लाखों लोगों की मौत हुई या वे प्रताड़ित हुए।
माओ की विरासत
माओ त्से तुंग की मृत्यु 1976 में हुई, जिसके बाद चीन ने धीरे-धीरे उदारवादी नीतियों की ओर कदम बढ़ाया। माओ को चीन में एक महान क्रांतिकारी नेता के रूप में सम्मानित किया जाता है, लेकिन उनकी नीतियों के कारण हुई व्यापक जनहानि को लेकर उनकी आलोचना भी होती है।
उनकी विरासत आज भी विवादास्पद है – एक ओर वह चीन के एकीकरण और आत्मनिर्भरता के प्रतीक हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी नीतियों ने करोड़ों लोगों की जान ली।
More info in Wikipedia👇
https://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_Communist_Revolution
निष्कर्ष
माओ त्से तुंग और चीनी क्रांति ने चीन के इतिहास की धारा ही बदल दी। CCP का उदय, ग्रेट लीप फॉरवर्ड और सांस्कृतिक क्रांति – ये सभी घटनाएँ आधुनिक चीन की नींव हैं। इनसे यह स्पष्ट होता है कि किसी भी सामाजिक या राजनीतिक क्रांति के दीर्घकालिक परिणाम गहरे और जटिल होते हैं।
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