Alexander vs Porus: अलेक्जेंडर और पोरस का एक एतिहासिक युद्ध

Alexander vs Porus: इतिहास की गहराइयों में जब हम झाँकते हैं, तो कुछ युद्ध केवल भूगोल या सत्ता की लड़ाई नहीं होते — वे संस्कृति, आत्मसम्मान और नेतृत्व की परीक्षा भी बन जाते हैं। ऐसा ही एक युद्ध हुआ था 326 ईसा पूर्व में — अलेक्जेंडर और पोरस का युद्ध, जिसे “हाइडेस्पीज़ का युद्ध” भी कहा जाता है। यह युद्ध न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि दो महान योद्धाओं की विचारधारा और सम्मान की भावना को भी उजागर करता है।


अलेक्जेंडर विश्व विजेता की महत्वाकांक्षा

मकदूनिया (Macedonia) के राजा अलेक्जेंडर महान (Alexander the Great) को इतिहास का सबसे महान सेनानायक माना जाता है। उनके जीवन का लक्ष्य था — पूरे ज्ञात विश्व को जीतना। वह यूनान से निकलकर मिस्र, ईरान और अफगानिस्तान होते हुए सिंधु नदी की घाटियों तक पहुँच चुका था। अलेक्जेंडर की सेना अत्याधुनिक हथियारों और प्रशिक्षण से समपन थी। उसकी रणनीति, तेजी से हमला करना और शत्रु को भ्रमित करना था। भारत उसके लिए एक अनजानी ज़मीन थी, लेकिन वह जानता था कि असली विजय वही होती है जो अनदेखे क्षेत्रों में हो।


राजा पोरस: पंजाब का गौरव

राजा पोरस (या पुरु), उस समय भारत के पश्चिमोत्तर भाग — विशेष रूप से झेलम और चेनाब नदियों के बीच के क्षेत्र का शासक था। वह न केवल एक साहसी योद्धा था, बल्कि उसकी सेना में भारी हाथी, घुड़सवार, धनुर्धारी और पैदल सैनिक भी थे।
पोरस को भारतीय परंपरा में वीरता का प्रतीक माना जाता है।
उसकी सबसे बड़ी ताकत थी — रणभूमि में डटे रहना, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। उसका आत्मसम्मान और रणनीतिक सोच, उसे दूसरों से अलग करता है।


युद्ध से पहले की स्थिति

अलेक्जेंडर जब झेलम नदी (Hydaspes) तक पहुँचा, तो उसे जानकारी मिली कि पोरस युद्ध के लिए तैयार है और वह आसान लक्ष्य नहीं होगा। पोरस ने अलेक्जेंडर को संदेश भेजा कि वह उसकी अधीनता स्वीकार नहीं करेगा।
पोरस ने कहा:
“यदि वह युद्ध चाहता है, तो उसे युद्ध मिलेगा
अलेक्जेंडर ने तय किया कि रात के अंधेरे में नदी पार कर छिपकर आक्रमण करेंगे। उसके साथियों ने इसका विरोध किया क्योंकि झेलम नदी उस समय बरसात के कारण उफान पर थी, लेकिन अलेक्जेंडर ने जोखिम उठाया।


युद्ध की रणनीति और टकराव

अलेक्जेंडर ने रात को 25,000 सैनिकों को लेकर नदी पार की, और पोरस को आश्चर्यचकित कर दिया। पोरस की सेना की ताकत उसके हाथी थे, जबकि अलेक्जेंडर के पास बेहतर संगठन और गतिशीलता।
युद्ध का दृश्य:
पोरस ने अपने हाथियों को अग्रिम पंक्ति में खड़ा किया।
यूनानी सेना ने घुड़सवारों और भालाधारियों से हमला शुरू किया।
बरसात के कारण कीचड़ और फिसलन ने पोरस के हाथियों की गति को कम कर दिया।
अलेक्जेंडर ने पोरस की बायीं पंक्ति को घेरकर उसे केंद्र से अलग कर दिया।
युद्ध कई घंटे चला, दोनों योद्धाओं ने अपने कई सेनिक खो दिए, युद्ध का मंजर और भयावह होने लगा। पोरस की सेना बहादुरी से लड़ती गई, लेकिन अंत में पोरस हार गए, और उन्हें बंदी बना लिया गया।


दो योद्धाओं का आमना-सामना

अलेक्जेंडर ने जब घायल पोरस को बंदी बनाकर अपने शिविर में बुलवाया, तो एक ऐतिहासिक संवाद हुआ:
अलेक्जेंडर बोला: “तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए?”
राजा पोरस ने कहा: “एक राजा जैसा।”
अलेक्जेंडर, पोरस के इस उत्तर से इतना प्रभावित हुआ, कि न केवल उसे क्षमा किया, बल्कि उसका राज्य लौटा दिया और उसे मित्र राजा बना लिया।
यह अलेक्जेंडर की राजनयिक सूझबूझ और सम्मान के सिद्धांत का भी प्रतीक था।


इस युद्ध के दूरगामी प्रभाव

भारत पर प्रभाव:
यह युद्ध भारत पर ग्रीक आक्रमणों की शुरुआत था।
हालांकि अलेक्जेंडर की सेना ने इसके बाद आगे बढ़ने से मना कर दिया — क्योंकि वे पोरस की बहादुरी से डर चुके थे।
पोरस की वीरता ने भारतीय राजाओं में संघर्ष की प्रेरणा जगाई।

ग्रीक दृष्टिकोण:
यूनानी इतिहासकारों ने पोरस को “महान और बहादुर राजा” कहा।
अलेक्जेंडर ने पोरस से बहुत कुछ सीखा — भारतीय युद्धकला, शासन प्रणाली और हाथियों का महत्व।


ऐतिहासिक प्रमाण और स्रोत

इस युद्ध के प्रमुख स्रोत हैं:
यूनानी इतिहासकार अरियनक्युरटियस रूफस, और डियोडोरस सिकलस
भारतीय स्रोतों में सीमित उल्लेख है, लेकिन पोरस को हमेशा स्वाभिमानी और वीर राजा के रूप में चित्रित किया गया है।


पौराणिकता बनाम ऐतिहासिकता

कई लोग पोरस को पौराणिक राजा पुरु से जोड़ते हैं, और कुछ इसे भारत की एकता के प्रतीक के रूप में देखते हैं। वहीं, आधुनिक इतिहासकार इस युद्ध को एक सीमित लेकिन प्रभावशाली टकराव मानते हैं।


क्यों यह युद्ध आज भी प्रासंगिक है?

यह युद्ध बताता है कि साहस और आत्मसम्मान की कोई सीमा नहीं होती।
पोरस जैसे राजाओं की कहानियाँ आज भी राष्ट्र गौरव को बढ़ाती हैं।
अलेक्जेंडर और पोरस की भेंट नेतृत्व और मानवीय मूल्यों का एक आदर्श उदाहरण है।

Wikipedia पर और पढ़ें, English में।👇 https://en.wikipedia.org/wiki/Battle_of_the_Hydaspes


निष्कर्ष

अलेक्जेंडर और पोरस का युद्ध केवल तलवारों की टक्कर नहीं था — यह सम्मान, साहस और निर्णय की एक अमिट कहानी है। एक तरफ दुनिया का सबसे बड़ा सेनापति था, तो दूसरी ओर भारतीय धरती का वह राजा जो हारकर भी विजयी बना।
पोरस ने साबित कर दिया कि कभी-कभी हारना भी जीत की तरह होता है, यदि आत्मसम्मान बना रहे।


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https://theinfotimes.in/egypts-queen-cle…ra-history-story/

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