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भारत के उत्तराखंड राज्य के हिमालयी क्षेत्र में स्थित रूपकुंड झील (Roopkund Lake) एक ऐसी रहस्यमयी जगह है जो वैज्ञानिकों और इतिहासकारों को आज भी चकित करती है। यह झील समुद्र तल से लगभग 16,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और इसे आमतौर पर “Skeleton Lake” कहा जाता है, क्योंकि यहाँ 800 से अधिक मानव कंकाल पाए गए हैं।
रहस्य की शुरुआत
1942 में, ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड ने सबसे पहले इस रूपकुंड झील में बड़ी संख्या में मानव कंकालों को देखा था। शुरुआत में यह मान लिया गया कि ये कंकाल जापानी सैनिकों के हैं, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में घुसपैठ कर रहे थे। लेकिन जब जांच की गई, तो पाया गया कि ये कंकाल कई सदियों पुराने हैं।
वैज्ञानिक शोध और DNA टेस्टिंग
पिछले कुछ दशकों में रूपकुंड झील पर कई वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं। 2004 में किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इन कंकालों के DNA का विश्लेषण किया। इस शोध से यह बात सामने आई कि ये सभी लोग एक ही समय में मरे थे, और इनमें से अधिकांश की मृत्यु सिर में गंभीर चोट लगने से हुई थी – मानो किसी कठोर वस्तु, जैसे ओले, से हमला हुआ हो।
2019 में प्रकाशित एक नई रिसर्च में यह और भी चौंकाने वाली जानकारी मिली। DNA विश्लेषण से पता चला कि कंकालों में तीन अलग-अलग जातीय समूहों के लोग शामिल थे – एक दक्षिण एशियाई समूह, दूसरा पूर्वी भूमध्यसागरीय मूल का (जैसे ग्रीस या तुर्की के लोग), और तीसरा दक्षिण-पूर्व एशियाई। इससे यह निष्कर्ष निकला कि यह कोई एक ही घटना नहीं थी, बल्कि विभिन्न समयों पर यहाँ अलग-अलग समूहों की मृत्यु हुई थी।
क्या हुआ था वास्तव में?
ऐतिहासिक लोककथाओं के अनुसार, एक राजा अपनी रानी और दरबारियों के साथ नंदा देवी की तीर्थयात्रा पर निकला था। उन्होंने देवी का क्रोध तब झेला जब उन्होंने यात्रा के दौरान अनुशासन भंग किया। कहा जाता है कि तब देवी ने उन्हें एक भयानक तूफान और ओलों के रूप में दंड दिया, जिससे वे सभी मारे गए।
वैज्ञानिकों का मत है कि यह कहानी कुछ हद तक सत्य हो सकती है। भारी बर्फबारी और विशालकाय ओले, जिनका आकार क्रिकेट बॉल जितना बताया गया है, इन लोगों की मृत्यु का कारण हो सकता है।
क्यों बना यह रहस्य?
रूपकुंड झील साल के अधिकतर समय बर्फ से ढकी रहती है। गर्मियों में जब बर्फ पिघलती है, तब कंकाल दिखाई देने लगते हैं। आज भी वहां की यात्रा कठिन और जोखिम भरी है, जिससे यह जगह और भी रहस्यमयी बन जाती है।
कंकालों के साथ उनके वस्त्र, जूते, लोहे के भाले, लकड़ी के सामान और आभूषण भी मिले हैं। इससे यह साफ होता है कि ये लोग सामान्य यात्री नहीं थे – शायद ये तीर्थयात्री या व्यापारी दल थे।
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निष्कर्ष
रूपकुंड झील सिर्फ एक हिमालयी झील नहीं, बल्कि यह एक ऐसा जीवित रहस्य है जो इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान और लोककथा का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यह झील हमें न केवल प्राकृतिक आपदाओं की भयावहता दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हिमालय अब भी कई अनसुलझे रहस्यों का घर है। इस रहस्यमयी स्थान पर आज भी शोध जारी हैं। हर साल नई तकनीकों से किए गए परीक्षण वैज्ञानिकों को और चौंकाते हैं। इससे यह समझ आता है कि मानव इतिहास में कई अध्याय अभी भी अंधकार में हैं। रूपकुंड जैसे स्थान हमें यह प्रेरणा देते हैं कि अतीत को समझना वर्तमान की ज़िम्मेदारी है। यह झील मानव जिज्ञासा, प्रकृति की शक्ति और समय की क्रूरता – तीनों का प्रतीक है। इसलिए रूपकुंड न सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह विज्ञान और रोमांच का संगम भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी आकर्षित करता रहेगा।
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