Samurai Era of Japan: जापान का समुराई युग और योद्धाओं कि अनसुनी कहानी

Samurai Era of Japan: जापान का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण रहा है, जिसमें समुराई युग (Samurai Era) एक प्रमुख और प्रभावशाली अध्याय रहा है। समुराई, जिन्हें “बुशी” भी कहा जाता था, वे न केवल योद्धा थे, बल्कि वे जापानी संस्कृति, नैतिकता, और राजनीति के प्रतीक भी बने। समुराई युग ने जापान को सामाजिक, सैन्य और राजनीतिक रूप से आकार दिया और इसके प्रभाव आज भी जापानी समाज में दिखाई देते हैं।


समुराई का उदय

समुराई वर्ग की उत्पत्ति लगभग 8वीं से 9वीं सदी के बीच हुई थी, जब जापानी साम्राज्य का केंद्रीकरण कमज़ोर हो रहा था और स्थानीय सामंती शक्तियाँ उभर रही थीं। ये शक्तियाँ अपने-अपने क्षेत्रों की रक्षा के लिए पेशेवर योद्धाओं को नियुक्त करती थीं। इन्हीं योद्धाओं को आगे चलकर “समुराई” कहा गया। 10वीं सदी तक आते-आते समुराई एक संगठित वर्ग के रूप में उभरे और उन्होंने कई स्थानीय युद्धों में प्रमुख भूमिका निभाई। इस वर्ग ने सिर्फ तलवारबाज़ी नहीं सीखी, बल्कि बौद्ध धर्म और ज़ेन दर्शन का भी गहरा प्रभाव इनके जीवन पर पड़ा।

Samurai Era of Japan


बुशिडो: समुराई की नैतिक संहिता

समुराई केवल शस्त्रधारी योद्धा नहीं थे, बल्कि वे एक विशेष नैतिक संहिता का पालन करते थे जिसे “बुशिडो” कहा जाता था। बुशिडो का अर्थ है “योद्धा का पथ”, और यह सिद्धांत निम्नलिखित मूल्यों पर आधारित था,

  • निष्ठा (Loyalty)
  • सम्मान (Honor)
  • साहस (Courage)
  • ​कर्तव्यपरायणता (Duty)
  • आत्म-नियंत्रण (Self-discipline)
  • ​बलिदान की भावना (Sacrifice)

समुराई का आदर्श यह था कि वे अपने स्वामी (Daimyo) के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित रहते थे, चाहे इसके लिए प्राण ही क्यों न देने पड़ें।

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समुराई और शोगुनेट

12वीं सदी में जापान के राजनैतिक ढांचे में बड़ा परिवर्तन हुआ जब मिनामोटो योरीतोमो ने 1192 ईस्वी में शोगुन (Shogun) की उपाधि प्राप्त की। इसके साथ ही जापान में कामाकुरा शोगुनेट की शुरुआत हुई और सम्राट की शक्ति सीमित हो गई।
समुराई अब शोगुन और स्थानीय डेम्यो के अधीनस्थ बन गए। उन्होंने एक नई सत्ता प्रणाली की नींव रखी जिसमें शासकीय शक्ति सैन्य बलों के हाथों में केंद्रित हो गई। यह स्थिति लगभग 700 वर्षों तक बनी रही।

प्रमुख शोगुनेट युग निम्नलिखित रहे:

कामाकुरा शोगुनेट (1192–1333)
​अशिकागा शोगुनेट (1336–1573)
टोकुगावा शोगुनेट (1603–1868)

यह चित्र मीनामोटो नो योरीतोमो का ऐतिहासिक चित्रण है, जो 12वीं शताब्दी में जापान के पहले शोगुन बने। उन्होंने कामाकुरा शोगुनेट की स्थापना कर जापानी इतिहास में एक नई सैन्य शासन प्रणाली की नींव रखी।

(Minamoto no Yoritomo मीनामोटो नो योरीतोमो)

Samurai Era of Japan
Image source: Wikimedia Commons – Public Domain

सेंगोकू युग: अंतहीन युद्धों का दौर

15वीं से 16वीं सदी तक का समय जापान में “सेंगोकू जिदाई” (Sengoku Jidai – युद्धरत राज्यों का काल) कहलाया। यह समय जापान के इतिहास का सबसे अशांत काल था, जिसमें विभिन्न डेम्यो सत्ता के लिए आपस में लड़ते रहे। इस काल में समुराई वर्ग की मांग अत्यधिक बढ़ी और उन्होंने बड़े पैमाने पर युद्धों में भाग लिया।

प्रसिद्ध समुराई और शासक जैसे:
  • ओडा नोबुनागा
  • टोयोटोमी हिदेयोशी
  • टोकुगावा इयासु

इन्होंने जापान को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई।

(Oda nobunaga ओडा नोबुनागा)

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Image source: Wikimedia Commons – Public Domain

टोकुगावा युग और समुराई का सुनहरा समय

1603 में टोकुगावा इयासु ने सत्ता संभाली और जापान में टोकुगावा शोगुनेट की स्थापना की, जिससे देश में शांति और स्थायित्व आया। यह काल लगभग 250 वर्षों तक चला और इसे “एदो युग” भी कहा जाता है।
इस काल में समुराई युद्ध की अपेक्षा प्रशासन, लेखन, कला, शिक्षा, और नैतिकता के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। वे अब वेतनभोगी नौकरशाह बन गए और ‘साहसी योद्धा’ की छवि धीरे-धीरे ‘सभ्य। प्रशासक’ में बदलने लगी।

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समुराई का पतन और आधुनिक जापान

19वीं सदी के मध्य में जब पश्चिमी शक्तियाँ जापान के द्वार पर आईं और व्यापार के लिए दबाव डाला, तो टोकुगावा शासन की नीतियाँ असफल होने लगीं। इसके परिणामस्वरूप 1868 में मेइजी पुनर्स्थापना (Meiji Restoration) हुई और सम्राट को पुनः सत्ता सौंपी गई।

इसके साथ ही:
  • शोगुनेट प्रणाली समाप्त कर दी गई।
  • समुराई वर्ग की विशेषाधिकार समाप्त हुए।
  • तलवार ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • राष्ट्रीय सेना का गठन किया गया जिसमें सभी वर्गों के लोगों को भर्ती किया जाने लगा।

समुराई अब केवल इतिहास का हिस्सा बन गए।

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समुराई संस्कृति की विरासत

भले ही समुराई का युग समाप्त हो गया हो, लेकिन उनकी विरासत जापानी संस्कृति में आज भी जीवित है:

  • कराटे, जुडो और आइकिडो जैसी मार्शल आर्ट्स की जड़ें समुराई की युद्ध-कला में हैं।
  • बुशिडो का सिद्धांत आज भी जापान में अनुशासन, सम्मान और कर्तव्यपरायणता के रूप में आदर्श माना जाता है।
  • समुराई पर आधारित फिल्में, एनिमे और साहित्य आज भी विश्वभर में लोकप्रिय हैं।

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समुराई की प्रसिद्ध तलवार: “कताना”

समुराई की पहचान उनकी विशेष तलवार कताना (Katana) से होती थी। यह तलवार:

  • एकधारी, घुमावदार और तेज धार वाली होती थी।
  • इसे आत्मा का विस्तार माना जाता था।
  • कताना केवल हथियार नहीं, बल्कि एक प्रतीक था सम्मान, आत्मा और निष्ठा का।

कताना तलवार बनाना एक जटिल प्रक्रिया थी और इसमें महीनों लगते थे। आज भी यह जापानी कारीगरी और परंपरा का प्रतीक है।

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समुराई महिलाएं: ओनाबुगेशा

कम लोग जानते हैं कि समुराई पुरुषों के साथ-साथ ओनाबुगेशा नामक महिला योद्धाएं भी होती थीं। ये महिलाएं:

  • युद्ध कौशल में निपुण होती थीं।
  • अपने परिवार और क्षेत्र की रक्षा के लिए युद्ध करती थीं।
  • प्रसिद्ध ओनाबुगेशा में तोमोए गोजेन का नाम उल्लेखनीय है।

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Unesco World Heritage Site: Japan,

वैसे तो यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में जापान कि कई सारी जगहे आती है लेकिन उनमें से कई ऐतिहासिक जगहें समुराई युग से भी जुड़ी हुई है, खासकर हिमेजी कैसल (Himeji Castle) यह जापानी किला समुराई संस्कृति से संबंधित रहा हैं। इस किले से जुड़ी और जानकारी के लिए Unesco Ki Site पर जाएं।👇

https://whc.unesco.org/en/list/661/

(Himeji Castle हिमेजी कैसल)

Samurai Era of Japan


निष्कर्ष

समुराई युग जापान के इतिहास में केवल युद्धों और तलवारों का युग नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी संस्कृति, विचारधारा और जीवनशैली का युग था जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है। समुराई के सिद्धांत – निष्ठा, सम्मान, साहस और आत्म-बलिदान – आज भी दुनिया भर में आदर्श माने जाते हैं। समुराई न केवल जापान के रक्षक थे, बल्कि वे उसकी आत्मा भी थे। भले ही वे अब अस्तित्व में नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत जापान के हर कोने में जीवित है – कला में, संस्कृति में, साहित्य में और लोगों के जीवन में।


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