Rise of Adolf Hitler: एडोल्फ हिटलर का उदय और एक सैनिक से तानाशाह बनने की खौफनाक कहानी

Rise of Adolf Hitler: 20वीं सदी के इतिहास में यदि कोई ऐसा नाम था जो भय, नफरत और तानाशाही का प्रतीक बन चुका था, तो वह था – एडोल्फ हिटलर। एक सामान्य से चित्रकार से लेकर एक शक्तिशाली तानाशाह बनने तक की उसकी यात्रा विश्व इतिहास में सबसे अधिक विवादास्पद, खौफनाक और चर्चित घटनाओं में से एक है। उसका उदय ना केवल जर्मनी को बदल कर रख देता है, बल्कि पूरे विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध की आग में झोंक देता है।


प्रारंभिक जीवन

Image Source: Unknown author (Public Domain via Wikimedia Commons)

 

हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को ऑस्ट्रिया के ब्राउनाउ एम इन नामक कस्बे में हुआ था। उसके पिता, एलोइस हिटलर, एक सख्त सरकारी कर्मचारी थे जबकि मां, क्लारा, बहुत ही स्नेही थीं। बचपन में ही हिटलर के मन में जर्मन राष्ट्रवाद की भावना घर कर चुकी थी। बचपन में हिटलर का सपना था कि वह एक चित्रकार (painter) बने। वह एक कलाकार बनना चाहता था।
वह विशेष रूप से भवनों और वास्तुशिल्प (architecture) की पेंटिंग बनाना पसंद करता था।
उसने सैकड़ों watercolor और oil पेंटिंग्स बनाए — ज्यादातर इमारतें, सड़कें, पुराने शहर आदि।
लेकिन वियना की कला अकादमी (Academy of Fine Arts Vienna) ने उसे दो बार अस्वीकार कर दिया।
जब उसे 1907 और 1908 में वियना की आर्ट अकादमी: (Academy of Fine Arts Vienna) से रिजेक्शन मिला तो वह बहुत निराश और मानसिक रूप से अस्थिर हो गया।
उसने कुछ समय तक वियना की सड़कों पर बेघर और गरीबी में जीवन बिताया।
और फिर धीरे-धीरे उसका झुकाव राजनीति, राष्ट्रवाद और यहूदी-विरोधी विचारों की ओर बढ़ने लगा।


प्रथम विश्व युद्ध और हिटलर की मानसिकता

1914 में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा और हिटलर ने जर्मन सेना में शामिल होकर फ्रांस के मोर्चों पर लड़ाई लड़ी। उसने वीरता के लिए आयरन क्रॉस जैसे पदक भी जीते। युद्ध में जर्मनी की हार और वर्साय संधि (Treaty of Versailles) ने उसकी सोच को पूरी तरह बदल दिया। उसे विश्वास था कि जर्मनी को धोखा दिया गया है और यहूदी, वामपंथी और लोकतांत्रिक नेता इसके जिम्मेदार हैं।


नाज़ी पार्टी का उदय

1919 में हिटलर जर्मन वर्कर्स पार्टी (DAP) में शामिल हुआ, जो जल्द ही नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (NSDAP) बन गई, जिसे दुनिया ने “नाज़ी पार्टी” के नाम से जाना। हिटलर की भाषण शैली तीखी, जोशीली और उग्र थी, जिससे वह तेजी से लोकप्रिय हुआ।
1923 में उसने म्यूनिख में बियर हॉल पुट्सच के जरिए सरकार गिराने की असफल कोशिश की और जेल चला गया। जेल में ही उसने “Mein Kampf” नामक पुस्तक लिखी जिसमें उसने अपने विचार, यहूदी विरोध और राष्ट्रवाद की व्याख्या की।


वाइमर गणराज्य की विफलता

पहले विश्व युद्ध के बाद बना वाइमर गणराज्य आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर था। 1929 की महामंदी ने जर्मनी को और तबाह कर दिया। बेरोजगारी, गरीबी और राष्ट्रीय अपमान ने जनता को हिटलर जैसे “मसीहा” की ओर खींचा। हिटलर ने वादा किया –“हम जर्मनी को फिर से महान बनाएंगे।”
और लोग उसकी बातों पर विश्वास करने लगे।


सत्ता पर कब्जा

1933 में राष्ट्रपति हिन्डेनबर्ग ने हिटलर को चांसलर नियुक्त कर दिया। जल्द ही उसने संसद में बहुमत प्राप्त कर एनाब्लिंग एक्ट पारित कराया, जिससे उसे तानाशाही शक्तियाँ मिल गईं। विरोधी दलों, प्रेस और यहूदियों पर प्रतिबंध लगा दिए गए।
अब वह सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि जर्मनी का एकमात्र शासक बन चुका था।


तानाशाही और आतंक का दौर

हिटलर ने नाज़ी विचारधारा को थोपने के लिए गेस्टापो (गुप्त पुलिस), एस.एस. बल और प्रोपेगेंडा मशीनरी का निर्माण किया। स्कूलों, फिल्मों और अख़बारों तक में नाज़ी विचारधारा परोसी जाने लगी। जो भी विरोध करता – उसे गिरफ्तार या मौत के घाट उतार दिया जाता।


यहूदी विरोध और होलोकॉस्ट

हिटलर ने यहूदियों को जर्मनी की सारी समस्याओं की जड़ बताया।
1935 में न्यूरेम्बर्ग लॉज़ लागू कर यहूदियों के नागरिक अधिकार छीन लिए गए।
1938 में “क्रिस्टल नाइट” (Crystal Night) के दौरान हजारों यहूदी दुकानों, घरों और पूजा स्थलों को नष्ट किया गया।
इसके बाद लाखों यहूदियों को कंसन्ट्रेशन कैंप्स और गैस चेंबरों में भेजा गया – जिसने जन्म दिया इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार – “The Holocaust” को।


द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत

1 सितंबर 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया। इसके जवाब में ब्रिटेन और फ्रांस ने युद्ध की घोषणा कर दी।
हिटलर की सेना ने फ्रांस, नीदरलैंड, डेनमार्क, नॉर्वे जैसे देशों पर चढ़ाई कर दी। लेकिन जब उसने 1941 में सोवियत संघ पर हमला किया, तो वही उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।


पतन और अंत

1944-45 तक जर्मनी चारों तरफ से घिर चुका था। मित्र राष्ट्रों ने बमबारी तेज कर दी, और सोवियत सेना बर्लिन की सीमा तक पहुँच गई।
30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने बर्लिन के बंकर में अपनी आत्महत्या कर ली। उसके साथ ही नाज़ी शासन का अंत हो गया।


निष्कर्ष

हिटलर का उदय दिखाता है कि एक व्यक्ति, यदि जनता की हताशा और नफरत को भुना ले, तो वह लोकतंत्र को तानाशाही में बदल सकता है।
उसके शासन का अंत एक भयंकर युद्ध, करोड़ों मौतें और एक ऐसी त्रासदी में हुआ जिसने दुनिया को झकझोर कर रख दिया।
हमें यह याद रखना चाहिए कि – इतिहास को भूलने वाले, उसे दोहराने को मजबूर होते हैं।

आप चाहें तो इसे भी पढ़ सकते हैं।👇👇

https://theinfotimes.in/mesopotamian-civilization/

 

Leave a Comment

Share
Exit mobile version