Christopher Columbus: एक खोजकर्ता या फिर एक आक्रमणकारी?

Christopher Columbus: विश्व इतिहास में कुछ खोजें ऐसी होती हैं, जो न केवल मानचित्र बदल देती हैं, बल्कि सभ्यता, व्यापार, राजनीति और संस्कृति की दिशा भी मोड़ देती हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना थी — क्रिस्टोफर कोलंबस की खोज या अक्रम? 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब यूरोप के लोग एशिया तक समुद्री रास्ते की तलाश में थे, तब कोलंबस की यात्रा ने अज्ञात ‘नवीन विश्व’ के दरवाज़े खोल दिए। हालांकि उसका उद्देश्य भारत पहुँचने का था, लेकिन उसने जो खोजा वह आज के अमेरिका का प्रवेश द्वार बन गया।


कोलंबस का प्रारंभिक जीवन

क्रिस्टोफर कोलंबस का जन्म 1451 ईस्वी में इटली के जेनोआ में हुआ था। उसके पिता एक साधारण कपड़े बुनने वाले बुनकर थे। कोलंबस को प्रारंभ से ही समुद्रों में गहरी रुचि थी। किशोरावस्था में ही वह नाविक बन गया और कई समुद्री यात्राएँ कीं। धीरे-धीरे उसने नाविक और भूगोलविद के रूप में ख्याति प्राप्त कर ली।
उस समय के यूरोपीय लोग भारत और चीन जैसे पूर्वी देशों से मसाले, रेशम और अन्य बहुमूल्य वस्तुओं का व्यापार करना चाहते थे। लेकिन ज़मीन का रास्ता (सिल्क रूट) मुस्लिम शासकों के नियंत्रण में था। इसलिए समुद्री मार्ग से भारत पहुँचने की योजना बनाई गई।


कोलंबस की योजना

कोलंबस का मानना था कि पृथ्वी गोल है और यदि वह पश्चिम की ओर यात्रा करेंगा, तो अंत्ताहा: भारत पहुँच सकता है। यह विचार उस समय कुछ विद्वानों को हास्यास्पद लगा, पर कोलंबस को अपनी सोच पर पूरा विश्वास था।
उन्होंने पहले पुर्तगाल के राजा से सहायता मांगी, लेकिन वहाँ से अस्वीकार कर दिया गया। फिर वह स्पेन के राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला के पास पहुँचे। कई वर्षों के प्रयास के बाद, अंत्ताहा: 1492 में उसको तीन जहाजों — सांता मारिया, पिंटा और नीना के साथ यात्रा की अनुमति मिल गई।

Christopher Columbus


03/अगस्त/1492, पालोस बंदरगाह, स्पेन

3 अगस्त 1492 को कोलंबस ने स्पेन के पालोस बंदरगाह से अपनी यात्रा आरंभ की। कई सप्ताह तक समुद्र में यात्रा करने के बाद 12 अक्टूबर 1492 को उसे बहरी द्वीपों में से एक पर भूमि दिखाई दी। कोलंबस ने सोचा कि वह भारत या एशिया के तट पर पहुँच गया है, लेकिन वास्तव में वह पहुँचा था बहामास द्वीप समूह में।
उसने उस भूमि को “इंडीज़” नाम दिया और वहाँ के मूल निवासियों को “इंडियन” कह कर पुकारा। यह भ्रम आने वाले कई वर्षों तक बना रहा।

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कोलंबस ने कुल चार यात्राएँ कीं

1. पहली यात्रा (1492-93)
  • बहामास, क्यूबा और हिस्पानियोला (वर्तमान हाइती और डोमिनिकन गणराज्य)
  • सांता मारिया जहाज़ एक दुर्घटना में नष्ट हो गया।
  • ​कोलंबस कुछ नाविकों को वहीं छोड़ कर स्पेन लौट आया।
2. दूसरी यात्रा (1493-96)
  • 17 जहाजों और 1200 पुरुषों के साथ वापस आया।
  • नए उपनिवेश स्थापित किए और अधिक द्वीपों की खोज की, जमैका, ग्वाडालूप, प्यूर्टो रिको आदि।
3. तीसरी यात्रा (1498-1500)
  • उसने पहली बार दक्षिण अमेरिका की मुख्य भूमि को देखा।
  • त्रिनिडाड और वेनेजुएला की खाड़ी तक पहुँचा।
  • वहाँ की कठिनाइयों और आरोपों के कारण उसे गिरफ्तार कर स्पेन वापस लाया गया।
4. चौथी और अंतिम यात्रा (1502-1504)
  • कोलंबस ने मध्य अमेरिका के तटों — होंडुरास, निकारागुआ, कोस्टा रिका और पनामा — तक पहुँच बनाई।
  • तूफानों और बीमारियों से ग्रस्त होकर वह बड़ी मुश्किल से स्पेन लौटे।

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कोलंबस की विरासत

कोलंबस का नाम इतिहास में एक जटिल पात्र के रूप में दर्ज है — एक साहसी खोजकर्ता जिसने विश्व इतिहास को बदल दिया, लेकिन साथ ही उपनिवेशवाद और शोषण की नींव भी रखी। अमेरिका के एक महाद्वीप — “Colombia” (कोलंबिया) उन्हीं के नाम पर है। “District of Columbia” (D.C.), अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी भी उन्हीं की याद दिलाती है।

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आलोचना विवाद और हिंसा के आरोप

आज के युग में, कोलंबस की यात्राओं को केवल वीरता की दृष्टि से नहीं देखा जाता। कई इतिहासकारों और सामाजिक संगठनों ने उस पर मूल निवासियों पर अत्याचार, गुलामी और हिंसा फैलाने के आरोप लगाए हैं।

  • हिस्पानियोला में मूल निवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ।
  • जनसंख्या में भारी गिरावट आई — बीमारियाँ, जबरन श्रम और हत्याओं के कारण।
  • अमेरिकी आदिवासियों की सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुँचा।
  • कोलंबस और उनके साथियों ने हजारों मूल निवासियों को गुलाम बनाया, कुछ को स्पेन भेजा गया और बहुतों को वही मार दिया गया।
  • Taino जनजातियों के साथ ज़बरदस्ती, जबरन श्रम, महिलाओं के साथ बलात्कार, और अत्याचार के कई दस्तावेज़ी साक्ष्य मौजूद हैं।
  • Bartolomé de las Casas नामक एक समकालीन पादरी ने कोलंबस के अत्याचारों का विस्तार से वर्णन किया है।
  • कुछ लोग कोलंबस को “यूरोपीय विस्तारवाद” का प्रतीक मानते हैं, जिसने आधुनिक वैश्विक संपर्क को जन्म दिया।
  • वहीं कुछ उसे “उपनिवेशवाद, गुलामी और विनाश का जनक” भी कहते हैं।

अमेरिका में “कोलंबस डे” को अब कई जगहों पर “इंडिजिनस पीपल्स डे” के रूप में मनाया जाने लगा है, ताकि मूल निवासियों को सम्मान दिया जा सके।

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कोलंबस की मृत्यु

कोलंबस की अंतिम वर्षों में स्थिति अच्छी नहीं रही। उसे सम्मान नहीं मिला, उसका स्वास्थ्य गिर गया, और वह अपने जीवन के अंत में दुखी था। 1506 में, 55 वर्ष की आयु में स्पेन में उसकी मृत्यु हो गई। उसने मरते दम तक यह विश्वास किया कि वह भारत ही खोजकर आया था।

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निष्कर्ष

कई इतिहासकारों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि कोलंबस कोई सीधा-साधा खोजकर्ता नहीं था।
उसने इतिहास रचा, लेकिन उसी इतिहास में दर्द, खून और लूट भी लिखी थी।

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