Temples of Khajuraho: भारत की प्राचीन संस्कृति और वास्तु विज्ञान कला की अनमोल धरोहरों में से एक है खजुराहो के मंदिर। मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित ये मंदिर न सिर्फ़ वास्तुकला का चमत्कार हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की व्यापकता, सहनशीलता और सौंदर्यबोध का प्रतीक भी हैं। खजुराहो की विशेषता उसकी जटिल मूर्तिकला, सुंदर संरचना और वह प्रसिद्ध कामकला की मूर्तियाँ हैं जो दुनिया भर के शोधकर्ताओं, पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करती हैं।
खजुराहो का इतिहास और कालखंड
खजुराहो मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ई. के बीच चंदेल वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। चंदेल शासक शिव, विष्णु और देवी की पूजा करते थे और उन्होंने लगभग 85 मंदिरों का निर्माण करवाया था, जिनमें से आज केवल 22 मंदिर ही सुरक्षित बचे हुए हैं।
इन मंदिरों का ज़िक्र अलबरूनी, तैमूरलंग के यात्रावृत्तांत और अन्य फारसी लेखकों की पुस्तकों में भी आता है। यह स्थान कभी “खर्जुरवाहक” या “खर्जुरपुर” कहलाता था।

चंदेल वंश और उनके संरक्षण
चंदेल वंश, जो पहले प्रतिहारों के अधीन था, धीरे-धीरे स्वतंत्र होकर मध्यभारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरा। उन्होंने न केवल युद्ध कौशल में महारत हासिल की, बल्कि कला, संस्कृति और धर्म में भी गहरी रुचि दिखाई। खजुराहो मंदिर उनके राजकीय संरक्षण का परिणाम हैं, जिनमें वास्तु विज्ञान, शिल्पकला और धार्मिक विश्वासों का सुंदर समागम देखने को मिलता है।

वास्तु विज्ञान शैली और निर्माण तकनीक
खजुराहो के मंदिर नगर शैली में बनाए गए हैं, जो उत्तर भारतीय मंदिर वास्तु विज्ञान की एक प्रमुख शैली है। इन मंदिरों में:
- ऊँचे शिखर (टॉवर) हैं जो पर्वतों के आकार की याद दिलाते हैं।
- मंडप (सभागृह), अंतराल (मध्य भाग), गर्भगृह (मुख्य देवस्थान) आदि भाग होते हैं।
- बालुआ पत्थर (Sandstone) से निर्मित ये मंदिर बिना चूने या सीमेंट के जुड़वाँ पत्थरों से बनाए गए हैं।
- निर्माण में “Interlocking” तकनीक का प्रयोग किया गया था, जिससे ये आज तक टिके हुए हैं।

मूर्तिकला में कामकला की भूमिका
खजुराहो के मंदिरों की सबसे चर्चित और विवादित विशेषता हैं — कामकला से जुड़ी मूर्तियाँ। ये मूर्तियाँ:
- मानव प्रेम, कामुकता और यौन क्रियाओं को दर्शाती हैं।
- लेकिन यह केवल मंदिर के बाहरी भागों तक सीमित हैं – गर्भगृह और देवी-देवताओं के निकटतम स्थानों पर ये नहीं मिलतीं।
- यह दर्शाता है कि काम (कामुकता) भी जीवन का एक अंग है, लेकिन मोक्ष पाने के लिए अंत्ताहा: मन को इंन विषयों से ऊपर उठाना पड़ता है।
इन मूर्तियों का उद्देश्य सिर्फ़ यौन चित्रण नहीं है, बल्कि मानव जीवन की पूर्णता और प्रकृति के विविध पहलुओं को प्रदर्शित करना है। इसमें संगीत, नृत्य, युद्ध, देवी-देवता, दैनिक जीवन के दृश्य, स्त्रियों की सुंदरता और प्रेम के अनेक रंग शामिल हैं।

धार्मिक विविधता: हिंदू और जैन मंदिर
खजुराहो में मौजूद मंदिर हिंदू धर्म (विशेष रूप से शैव और वैष्णव परंपरा) और जैन धर्म से संबंधित हैं। यह उस समय की धार्मिक सहनशीलता और बहुलता का प्रमाण है।
मुख्य मंदिरों में शामिल हैं:
प्रमुख हिंदू मंदिर:
कंदरिया महादेव मंदिर — शिव को समर्पित, सबसे भव्य और ऊँचा मंदिर।
- लक्ष्मण मंदिर — विष्णु को समर्पित।
- विश्वनाथ मंदिर — शिव को समर्पित।
प्रमुख जैन मंदिर:
- पार्श्वनाथ मंदिर
- अदिनाथ मंदिर
- शांतिनाथ मंदिर

संस्कृति और समाज का प्रतिबिंब
खजुराहो की मूर्तियाँ तत्कालीन समाज, संस्कृति और मान्यताओं का जीवंत दस्तावेज़ हैं। इनमें:
- महिलाओं की स्वतंत्रता और सौंदर्य के प्रति जागरूकता
- विविध नृत्य मुद्राएँ और संगीत वाद्य यंत्र
- शाही जीवन, दास-दासियाँ, गणिकाएँ
- देवी-देवताओं की कथा झलकियाँ
ये सब एक साथ मिलकर यह बताते हैं कि यह समाज धार्मिक होने के साथ-साथ जीवन के सभी पहलुओं को स्वीकार करता था — चाहे वह धर्म हो, काम हो, कला हो या सौंदर्य।
खजुराहो और UNESCO विश्व धरोहर सूची
1986 में खजुराहो के मंदिरों को UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई। इसके दो मुख्य कारण थे:
- इन मंदिरों की अद्भुत मूर्तिकला और वास्तु विज्ञान।
- इनका सांस्कृतिक महत्व और मानव जीवन के विविध पक्षों का चित्रण।
यह मान्यता न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खजुराहो की प्रसिद्धि को बढ़ाती है, बल्कि इसके संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयासों को भी प्रोत्साहित करती है।
Unesco World Heritage Site, Khajuraho:
https://whc.unesco.org/en/list/240/
पर्यटन, संरक्षण और वर्तमान स्थिति
आज खजुराहो भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। हर वर्ष हजारों देशी-विदेशी पर्यटक इन मंदिरों को देखने आते हैं।
सरकार द्वारा इन मंदिरों के संरक्षण हेतु कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं:
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा नियमित मरम्मत।
- खजुराहो डांस फेस्टिवल — हर साल आयोजित किया जाता है, जिसमें भारत की शास्त्रीय नृत्य शैलियों की प्रस्तुति होती है।
- 2023 में भारत सरकार ने इसे “प्रोमोटेड टूरिस्ट सर्किट” के रूप में शामिल किया।
हालांकि, कुछ मंदिरों की स्थिति चिंताजनक है और कई मूर्तियाँ समय के साथ नष्ट हो चुकी हैं।

निष्कर्ष
खजुराहो के मंदिर केवल पत्थरों की संरचना नहीं हैं — वे एक जीवंत सभ्यता की गवाही हैं। इनमें समाहित है भारत की वास्तु विज्ञान कला, धार्मिक बहुलता, जीवन दर्शन और सौंदर्य चेतना। इन मंदिरों में जीवन के हर रंग को मूर्ती रूप में देखा जा सकता है — धर्म, प्रेम, नारी, कामना, मोक्ष, संगीत और शक्ति।
आज जब आधुनिक समाज में प्रेम और काम को केवल वर्जनाओं के चश्मे से देखा जाता है, तब खजुराहो हमें याद दिलाता हैं कि प्रेम और सौंदर्य भी जीवन के आध्यात्मिक अनुभवों का हिस्सा हो सकते हैं।
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