The Rise of Chatrapati Shivaji Maharaj: 17वीं सदी का भारत राजनैतिक अस्थिरता और मुगलों की बढ़ती सत्ता के बीच एक नया सूरज देख रहा था — एक ऐसा नेता जो स्वराज्य और आत्मसम्मान का प्रतीक बना। वह थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जिनका उदय न केवल एक राजशक्ति की स्थापना था, बल्कि भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता और स्वाभिमान की नींव रखने वाला युग था।
प्रारंभिक जीवन
शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग (जूनार, पुणे) में हुआ। उनके पिता शाहजी भोसले बीजापुर सल्तनत में एक सेनापति थे और माता जिजाबाई धर्मपरायण और वीरता की प्रतीक महिला थीं। जिजाबाई ने शिवाजी को रामायण, महाभारत और भारतीय गौरव की कथाओं से प्रेरित किया।
उनका पालन-पोषण दादाजी कोंडदेव द्वारा हुआ, जिन्होंने उन्हें राजनीति, युद्धकला और प्रशासन की शिक्षा दी।
स्वराज्य की अवधारणा
शिवाजी बचपन से ही अपने चारों ओर फैली हुई अन्याय, अत्याचार और विदेशी शासन को देखकर चिंतित रहते थे। उन्होंने “हिंदवी स्वराज्य” की कल्पना की — एक ऐसा राज्य जो अपने लोगों के लिए, अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करता हो।
किलों का अधिग्रहण: आरंभिक विजय
शिवाजी ने अपना पहला किला तोरणा मात्र 16 वर्ष की उम्र में जीता। इसके बाद उन्होंने:
- कोंढाणा (सिंहगढ़)
- राजगढ़
- पुरंदर
- प्रतापगढ़ जैसे किलों पर कब्ज़ा जमाया।
यह सब उन्होंने बीजापुर सुल्तानों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध तकनीक (छापामार शैली) से किया, जिससे वे “छोटा कद, बड़ी चाल” के लिए प्रसिद्ध हो गए।
अफजल खान वध: साहस और रणनीति का अद्वितीय उदाहरण
बीजापुर के सेनापति अफजल खान को शिवाजी को खत्म करने भेजा गया। प्रतापगढ़ की तलहटी में 1659 में दोनों की मुलाकात हुई। अफजल खान ने धोखे से शिवाजी पर हमला किया, पर शिवाजी पहले से तैयार थे और उन्होंने वाघनख (लोहे के पंजे) से अफजल खान का वध कर दिया। यह घटना शिवाजी की रणनीतिक सोच और बहादुरी का प्रतीक बनी।
मुगलों से टकराव
शिवाजी महाराज की बढ़ती ताकत से मुगल बादशाह औरंगजेब चिंतित हुआ। उसने अपने सेनापति शाइस्ता खान और बाद में मिर्जा राजा जयसिंह को भेजा।
- शाइस्ता खान की हार: शिवाजी ने पुणे में घुसकर शाइस्ता खान की उंगलियां काट दीं। यह हमला उनकी सूझबूझ और हिम्मत का परिचायक था।
- पुरंदर की संधि (1665): जयसिंह से हार के बाद शिवाजी ने संधि की और फिर 1666 में आगरा में औरंगज़ेब से मिलने गए।
आगरा में नजरबंद
आगरा में शिवाजी का अपमान हुआ और उन्हें नजरबंद कर दिया गया। लेकिन उन्होंने अपने बेटे संभाजी के साथ फल और मिठाइयों की टोकरी में छिपकर आगरा से भागने का अनोखा और बहादुरी भरा कारनामा किया।
राज्याभिषेक और छत्रपति शिवाजी महाराज की उपाधि
1674 में रायगढ़ किले में शिवाजी का भव्य राज्याभिषेक हुआ। उन्हें “छत्रपति” की उपाधि मिली और उन्होंने औपचारिक रूप से मराठा साम्राज्य की स्थापना की। राज्याभिषेक के बाद उन्होंने:
- व्यवस्थित प्रशासन,
- कर प्रणाली यानी (Tax System)
- और धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित शासन प्रारंभ किया।
नौसेना और समुद्री शक्ति
शिवाजी पहले भारतीय शासक थे जिन्होंने भारत के पश्चिमी तट की रक्षा हेतु एक शक्तिशाली नौसेना बनाई। उन्होंने:
- सिंदुदुर्ग,
- विजयदुर्ग,
- और अन्य तटीय किलों का निर्माण किया।
उनकी यह रणनीति डच, पुर्तगाली और अंग्रेजी जहाजों से व्यापार और तटों की रक्षा के लिए थी।
शिवाजी का निधन
शिवाजी का निधन 3 अप्रैल 1680 को हुआ, लेकिन उन्होंने एक ऐसा बीज बोया जो आने वाले वर्षों में मराठा साम्राज्य को देश की सबसे बड़ी शक्ति बना देगा।
उनकी विरासत में शामिल हैं:
- स्वराज्य की भावना,
- धर्मनिरपेक्ष शासन,
- रक्षा के लिए अनोखी रणनीतियाँ,
- और जनता से जुड़ा शासन।
निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी का उदय भारत के इतिहास में एक क्रांति की तरह था। उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक सच्चे नेता के पास अगर दृढ़ संकल्प, नीतिकुशलता और जनता के प्रति जिम्मेदारी हो, तो वह इतिहास बदल सकता है।
शिवाजी केवल एक राजा नहीं थे — वे एक विचार, एक प्रेरणा, और भारत की आत्मा के रक्षक थे।
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